History Of Jodha Bai
आदि-काल से क्षत्रियो के राजनीतिक शत्रु उनके प्रभुत्वता को चुनौती देते आये है ! किन्तु क्षत्रिय अपने क्षात्र-धर्म के पालन से उन सभी षड्यंत्रों का मुकाबला सफलता पूर्वक करते रहे है ! कभी कश्यप ऋषि और दिति के वंशजो जिन्हें कालांतर के दैत्य या राक्षस नाम दिया गया था ,क्षत्रियो से सत्ता हथियाने के लिए भिन्न भिन्न प्रकार से आडम्बर और कुचक्रो को रचते रहे ! और कुरुक्षेत्र के महाभारत में जबकि अधिकांश ज्ञानवान क्षत्रियों ने एक साथ वीरगति प्राप्त कर ली ,उसके बाद से ही हमारे इतिहास को केवल कलम के बल पर दूषित कर दिया गया !इतिहास में भरसक प्रयास किया गया की उसमे हमारे शत्रुओं को महिमामंडित किया जाये और क्षत्रिय गौरव को नष्ट किया जाये ! किन्तु जिस प्रकार किसे हीरे के ऊपर लाख धूल डालो उसकी चमक फीकी नहीं पड़ती ठीक वैसे ही ,क्षत्रिय गौरव उस दूषित किये गए इतिहास से भी अपनी चमक बिखेरता रहा !
फिर धार्मिक आडम्बरो के जरिये क्षत्रियो को प्रथम स्थान से दुसरे स्थान पर धकेलने का कुचक्र प्रारम्भ हुआ ,जिसमे आंशिक सफलता भी मिली,,,, किन्तु क्षत्रियों की राज्य शक्ति को कमजोर करने के लिए उनकी साधना पद्दति को भ्रष्ट करना जरुरी समझा गया इसिलिय्रे अधर्म को धर्म बनाकर पेश किया गया !सात्विक यज्ञों के स्थान पर कर्म्-कांडो और ढोंग को प्रश्रय दिया गया !इसके विरोध में क्षत्रिय राजकुमारों द्वारा धार्मिक आन्दोलन चलाये गए जिन्हें धर्मद्रोही पंडा-वाद ने धर्म-विरोधी घोषित कर दिया ,, इस कारण इन क्षत्रिय राजकुमारों के अनुयायियों ने नए पन्थो का जन्म दिया जो आज अनेक नामो से धर्म कहलाते है ,,,,,ये नए धर्म चूँकि केवल एक महान व्यक्ति की विचारधारा के समर्थक रह गए और मूल क्षात्र-धर्म से दूर होगये, इस कारण कालांतर में यह भी अपने लक्ष्य से भटक कर स्वयं ढोंग और आडम्बर से ग्रषित होगये !
इसके बाद इन्ही धर्मो में से इस्लाम ने बाकी धर्मो को नष्ट करने हेतु तलवार का सहारा लिया ,,,इस कारण क्षत्रियों ने इसका जम कर विरोध किया और इस्लाम के समर्थको ने राज्य सत्ता को धर्म विस्तार के लिए आसान तरीका समझ ,आदिकाल से स्थापित क्षत्रिय साम्राज्यों को ढहाना शुरू कर दिया ! क्षत्रियों ने शस्त्र तकनिकी को तत्कालीन वैज्ञानिक समुदाय यानि ब्राह्मणों के भरोसे छोड़ दिया तो, परिणाम हुआ क्षत्रिय तोप के आगे तलवारों से लड़ते रहे ,,,,,चंगेज खान से लेकर बाबर तक तो सिर्फ भारत को लूटते रहे किन्तु बाबर ने भारत में अपना स्थायी साम्राज्य स्थापित करने में सफलता प्राप्त कर ली ! किन्तु भारत में पहले ही आचुके अफगानों ने हुमायु से सत्ता छीन ली और हुमायूँ दर-दर की ठोकरे खाता हुआ हुआ शरण के लिए अमरकोट के राजपूत राजा के यहाँ पहुंचा !अपनी गर्भवती बेगम को राजपूतों की शरण में छोड़ ,अपने राज्य को पुनः प्राप्त करने की तैयारियों में जुट गया !वहीँ जलालुद्धीनका जन्म हुआ और १३ वर्ष तक उसकी परवरिश राजपूत परिवार में हुयी !
हुमायूँ जब बादशाह बना तब पर्शिया से कुछ परिवारों को अपने साथ भारत लाया था ! जो की मूलरूप से मीनाकारी का कार्य किया करते थे ! उनके परिवारों में लड़कियों के विवाह का चलन नहीं था ,,इस कारण उनके कुछ परिवार अमरकोट और उसके आसपास कुछ पर्शियन लड़कियाँ दासियों का कार्य करती थी! इन्ही में से कुछ दासिया जोधपुर राजपरिवार में भी रहने लगी ! जोधपुर की राजकुमारी की एक निजी दासी जो पर्शियन थी ,जब उसके एक कन्या का जन्म हुआ तब वह रोने लगी की इस बच्ची का कोई भविष्य नहीं है | क्योंकि इसका विवाह नहीं होगा ,तब राजकुमारी ने उसे वचन दिया कि मै इसका विवाह किसी राजपरिवार में करूंगी ! जब जोधपुर कि राजकुमारी जो कि आमेर के राजा भारमल की रानी बनी ,ने प्रथम मिलन की रात्रि को ही राजा भारमल से वचन ले लिया कि हरखू को मैंने अपनी धर्म बेटी बनाया हुआ है और मै चाहती हूँ कि उसका विवाह किसी राजपरिवार में हो ,,राजा भारमल ने जोधपुर की राजकुमारी को वचन देदिया कि वह उसका विवाह किसी राजपरिवार में कर देंगे !
किन्तु यह आसान कार्य नहीं था क्योंकि किसी भी राजपूत परिवार ने हरखू से विवाह करना उचित नहीं समझा इस कारण उसकी उम्र काफी होगई! किसी भी राजपरिवार तो दूर साधारण गैर राजपूत हिन्दू परिवार ने भी तत्कालीन परिस्थितियों में हरखू से विवाह करने से मना कर दिया ,, इसकारण रानी का राजा भारमल से अपना वचन नहीं निभाने का उलहना असहनीय होता जारहा था ! इससे पूर्व जलालुद्धीन अकबर जब बादशाह बना तब ढूँढार (आमेर) में नरुकाओं का विद्रोह चल रहा था, इस कारण राजा भारमल ने बाध्य होकर अकबर से संधि करली थी, ताकि नरुकाओं एवं अन्य सरदारों के विद्रोह को दबाया जासके !और अकबर से राजा भारमल की इस संधि में कोई वैवाहिक शर्त जैसा कि आज दिखाने का प्रयास किया जाता है, कुछ नहीं था !
जब अकबर अजमेर शरीफ की यात्रा के लिए जा रहा था,तो रास्ते में राजा भारमल जी ने शिष्टाचार भेट कि तो वह कुछ चिंतित थे ,अकबर ने भारमल जी से चिंता का कारण जाना तो उन्होंने हरखू के के विवाह से सम्बंधित बात सविस्तार बतायी ,,अकबर ने पूंछा कि “महाराज उसका विवाह हिन्दू रीती से होगा या मुश्लिम रीति से?” भारमल जी ने बताया कि हिन्दू रीति से तब अकबर ने पूंछा कि कन्यादान कौन करेगा ? भारमल जी ने कहा कि हरखू मेरी धर्म पुत्री है और इस नाते कन्यादान मै ही करूँगा ! तब बादशाह अकबर ने कहा कि “मै राजपूत नहीं हूँ, किन्तु मेरा जन्म और परवरिश राजपूत परिवार में हुयी थी ,,,ठीक उसी तरह जैसे हरखू राजपूत नहीं है , किन्तु उसका भी जन्म और परवरिश भी राजपूत परिवार में हुयी है ” अतः यदि आपको उसके पिता बनाने में कोई ऐतराज नहीं तो मुझे उसके साथ विवाह करने में भी कोई ऐतराज नहीं है ! इसके बाद हरखू का विवाह अकबर के साथ किया गया ! यह कोई शर्मिंदगी या बदनामी की बात नहीं थी ,बल्कि राजा भारमल की बुद्धिमानी और धर्म और नारी जाति के प्रति सम्मान था,जिसकी सर्वत्र प्रशंसा की गयी,खासतोर पर पर्शिया के धर्म गुरुओं ने राजा भारमल को पत्र लिखकर एक पर्शिया लड़की के जीवन को संवारने के लिए प्रशंसा पत्र भेजा !
सिक्खों के गुरुओं ने भी इसकी प्रशंसा की और राजा भारमल की बुद्धिमानी के लिए साधुवाद दिया ! यह कहना गलत है कि यह हरखू जीवन भर हिन्दू रही,, ,वह कभी भी हिन्दू नहीं थी ,,,हां जब वह आमेर में रहती थी तब आमेर राजपरिवार के इष्ट देव श्री गोविन्देव जी की पूजा किया करती थी, इस कारण वह गोविन्द देव जी की पुजारी जरुर थी वरन तो वह फिर कभी भी जीवन में हरखू नहीं कहलाई उसका नाम मरियम बेगम पड़ गया और उसे बाकायदा इस्लाम रीति से ही कब्र में दफनाया गया था !जहाँगीर उसी मरियम उज्जमानी का बेटा था !
जोधा नाम से जो प्रसिद्द थी वह जोधपुर की एक दासिपुत्री जगत गुसाईं (जो कि हरखू के ही भाई कि बेटी थी), जिसका निकाह जहाँगीर के साथ हुआ था और शाहजहाँ की माँ थी ,वह चूँकि जोधपुर से सम्बंधित थी और उसका कन्यादान मोटा राजा उदय सिंह जी ने किया था , इस कारण जोधा भी कहलाती थी ! रही बात आज लोग उस जगत गुसाईं उर्फ़ जोधा को अकबर से क्यों जोड़ बैठे ??तो यह तो सिर्फ फ़िल्मी जगत की उपज है ,जब पहली बार हरखू को जोधा बाई बना दिया गया, वह थी मुगले-आजम फिल्म ,,उस समय फिल्मों को कोई गंभीरता से नहीं लेता था !इस कारण फिल्म की प्रसिद्धि के बाद जोधा का नाम अकबर से जुड़ गया !और इस फिल्म के बाद जो छोटे मोटे इतिहासकार हुए उन्होंने भी अकबर के साथ जोधा का नाम जोड़ने का ही दुष्कृत्य किया है !
और रही सही कसर पूरी कर दी आशुतोष गोवोरकर ने “जोधा-अकबर” नाम से फिल्म बनाकर !अब इसे आगे बढ़ा रही है ,नारी के नाम पर धब्बा ,एकता कपूर जो एक बदनाम सीरियल को जी टी वी पर प्रसारित लगातार प्रसारित किये जारही है ! अब हम बात करते है कि यह सब अनायास हुआ या किसी साजिश के जरिये ???? बहुत सी डीबेटों में हम से यह भी पूंछा गया गया कि आखिर फिल्म ,टी.वी.और मिडिया ,शासन-प्रशासन और तमाम प्रचार प्रसार के साधन राजपूत -क्षत्रिय संस्कृति के विरोधी क्यों होगये ??
इसका बिलकुल साफ-साफ उत्तर है कि देश के विभाजन से पूर्व तक लगभग सभी स्थानीय निकाय या शासन तंत्र पर क्षत्रियों का ही अधिकार था और यदि राजपूत-क्षत्रियों की छवि को धूमिल नहीं किया जाता तो, हमसे जिन लोगो ने सत्ता केवल झूंठ और लोगो को सब्जबाग दिखाकर प्राप्त की थी, उसे शीघ्र ही क्षत्रिय समाज पुनः वापिस लेलता ! और होसकता है कि राष्ट्र को आज तक के ये दुर्दिन देखने ही नहीं पड़ते !इसलिए राजनीतिक षड़यंत्र के तहत क्षत्रिय समाज की संस्कृति ,इतिहास और छवि को मटियामेट करने के लिए समस्त साधन एकजुट होकर हमला करने लगे ,,,,ताकि क्षत्रिय होना कोई गौरव की बात नहीं रहे बल्कि शर्म की बात होजाये,,,,,
किन्तु क्षत्रिय समाज ने अपने पुरुषार्थ के बल पर न केवल अपनी प्रसान्सगिकता ही बनाये रखी बल्कि तमाम दुश्चक्रो को तोड़ने में सक्षमता दिखाई है ,,,,,,इस कारण यह समस्त विरोधी शक्ति एक साथ अब पुनः क्षत्रिय स्वाभिमान और गौरव को नष्ट करने में जुट गयी है !जहाँ तक इतिहास का सवाल है तो वर्तमान समय में उपलब्द्ध इतिहास दो तरह के लोगो के द्वारा लिखा गया है ,,,,एक तो चारणों ,भाटों और राजपुरोहितों द्वारा लिखा गया है, इसमें यह कमी रही है कि यह या तो अपने स्वामी की प्रशंसा में या अपने स्वामी के शत्रु की छवि को धूमिल करने के लिए लोखा गया था ! दूसरी तरफ लिखा गया इतिहास विदेशी आक्रान्ताओं और हमारे राजनितिक शत्रुओं ने अपने स्वामी मुगलों और आतातायियों के पक्ष में इतिहास लिखा और हमारे चारणों और भाटों ने हमारे लिए इतिहास लिखा किन्तु देश के विभाजन के बाद पंडित नेहरू जैसे लोगों ने हमारे राजनितिक शत्रुओं और विदेशी आक्रान्ताओं के लिखे इतिहास को मान्यता दी ताकि क्षत्रियो की छवि को धूमिल किया जासकें और हमारे परम्परागत इतिहासकारों के इतिहास को ख़ारिज कर दिया ताकि क्षत्रियो में स्वाभिमान के पुनर्जीवन का अवसर ही नहीं मिल पाए |
फिर भी लोकगीतों, भजनों, लोक-कथाओं, स्वतन्त्र कहानीकार और साहित्यकार मुंशी प्रेम चंद जैसे लोगों, मंदिर के शिलालेखो के जरिये आमजनता के समक्ष क्षत्रिय गौरव पहुँच गया है ! इसलिए शिक्षा के नाम पर जो इतिहास पढाया जाता है , और मनोरंजन के नाम पर टी.वी. पर जो दिखाया जाता है वह असत्य के आलावा और कुछ नहीं है ! ऐसे में हम क्षत्रिय जो समस्त चर-अचर ब्रह्मांड के रक्षक है, क्या केवल अपने धर्म ,संस्कृति और गौरव की रक्षा के लिए भी नहीं जागेंगे ???? तब धिक्कार है ऐसे कायरता और नपुंसकता भरे जीवन को ,,,,,
“जय क्षात्र-धर्म”
कुँवरानी निशा कँवर चौहान
Biography of Jodha Bai
6 Comments
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Padit ji jab ved puran likhe ja rahe the tab aap vahi bethe the kya
oh yes
i like this history
Kon kya sochta hai ye jaruri nahi q ki sabhi ki soch alag alag hote, lekin dukh to iss bat ki hai ki jis k liye rana kumbha ,rana saanga , Pritvi raj chauhan rana uday singh , maharana pratap , durga wati ye sab sabhi apni aan ban shan maan maryada , sanskrity ,parampara ko bachane k liye kabhi apne ghutne nahi teke OR ,rani karunawati hajaaaro rajputani k sath jhauhar ki , aaj to jauhar kya h ye v bhut log nahi jante hai ye sabhi purani bate h but rani laxmi bai , veer shiva jee ye to haal ki h .
Sab se dukh ki bat to ye h ki jinke liye ye log pure jeevan sangharsh karte h aaj usi ko ham bhula raha rahe h to ramayan or mahabhaat to door ki bat hai
baghel bhi to dasi putra hai to enhe kyo rajput bulate ho jodhabai ki sadi akbar se ho gai to dasiputra ho gai agar kisi rajput se hoti to dasiputra nahi hoti