Rani Durgavati History
जब दस हजार राजपूतो की मामूली से फ़ौज लेकर एक राजपूतानी लड़ी पचास हजार की फ़ौज वाले तुर्क अकबर से
मुगल सम्राट अकबर की विशाल सेना को पराजित कर वीरता और साहस का प्रतिमान स्थापित करने वाली रानी दुर्गावती जी मध्यकालीन भारत में जब देश भर के कई राजा मुगल सम्राट अकबर की गुलामी स्वीकार कर रहे थे तब बहुत से स्वाभिमानी राजपूत भी अपनी आन बान और शान के लिए लड़ रहे थे। इन्हीं में से एक रानी दुर्गावती ने अकेले अपने सामथ्र्य के बल पर अकबर को चुनौती दी थी।
चंदेल राजवंश में जन्मी रानी दुर्गावती राजपूत राजा कीरत राय की बेटी थी। उनका जन्म 5 अक्टूबर 1524 को बांदा में हुआ था। उनका विवाह गौंड राजवंश के दलपत शाह से हुआ था। इस विवाह के बाद चंदेल और गौंड राज्यों की सम्मिलित शक्ति ने शेरशाह सूरी की बढ़ती शक्ति पर लगाम लगाने का कार्य किया।
दुर्भाग्यवश विवाह के चार वर्ष बाद ही राजा दलपतशाह का निधन हो गया। उस समय दुर्गावती की गोद में तीन वर्षीय नारायण ही था। अतः रानी ने स्वयं ही गढ़मंडला का शासन संभाल लिया। उन्होंने अनेक मंदिर, मठ, कुएं, बावड़ी तथा धर्मशालाएं बनवाईं. वर्तमान जबलपुर उनके राज्य का केन्द्र था। उन्होंने अपनी दासी के नाम पर चेरीताल, अपने नाम पर रानीताल तथा अपने विश्वस्त दीवान आधारसिंह के नाम पर आधारताल बनवाया
अपने पति की मृत्यु के बाद रानी दुर्गावती ने अपने एकमात्र पुत्र वीर नारायण को संभालने के साथ-साथ अपने साम्राज्य की भी जिम्मेदारी अपने कंधों पर ले ली।
दुर्भाग्यवश उस समय अकबर के सेनापति ख्वाजा अब्दुल मजीद असफ खान ने मुगल सेना के साथ रानी दुर्गावती के राज्य पर हमला कर दिया। शुरूआती युद्ध जीतने के बाद रानी दुर्गावती हारने लगी परन्तु उन्होंने मैदान छोड़ने और हार स्वीकार कर अकबर की गुलामी करने के बजाय आत्महत्या करना स्वीकार किया।
24 जून 1564 को रानी दुर्गावती ने गंभीर रूप से घायल होने के बाद अपने आपको मुगलों के हाथों अपमान से बचाने के लिए वजीर आधारसिंह से आग्रह किया कि वह अपनी तलवार से उनकी गर्दन काट दे, पर वह इसके लिए तैयार नहीं हुआ। अतः रानी अपनी कटार स्वयं ही अपने सीने में भोंककर आत्म बलिदान के पथ पर बढ़ गयीं खंजर घोंपकर आत्महत्या कर ली और अपने जीते जी जिन्दा मुगलो के हाथ ना आई और अपने सतीत्व और राजपूती धरम को निभाया
रानी दुर्गावती पर मालवा के मुसलमान शासक बाजबहादुर ने कई बार हमला किया, पर हर बार वह पराजित हुआ |
Story of Rani Durgavati
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