History Of Haldighati
यह इलाका मेवाड़ क्षेत्र में पड़ता है। राजस्थान में एकलिंगजी से 18 किलोमीटर की दूरी पर है। वहीं उदयपुर से 40 किमी दूर है।यह अरावली पर्वत शृंखला में एक दर्रा है। उदयपुर के राजसमंद और पाली जिलों को जोड़ता है। इतिहासकारों के अनुसार हल्दीघाटी यानि रणस्थली।इस इलाके का नाम ‘हल्दीघाटी’ इसलिए पड़ा क्योंकि यहां की मिट्टी हल्दी जैसी पीली है।
एक ऐसा युद्ध जिसकी गाथा इतिहास के पन्नों पर रक्तिम अक्षरों में लिखी है। यहां युद्ध के दौरान इतना खून बहा की मिट्टी तक लाल हो चुकी है। आज भी यहां के बच्चे कखगघ के साथ युद्ध के बातें बोलना सीखते हैं।राजस्थान का एक ऐसा इलाका जहां महिलाएं सिंदूर नहीं हल्दीघाटी की लाल हो चुकी मिट्टी लगाती हैं।
आपको जानकर आश्चर्य होगा कि इस जगह का नाम हल्दीघाटी यहां की पीली मिट्टी की वजह से पड़ा था लेकिन अकबर और महाराणा प्रताप के युद्ध के बाद ये मिट्टी लाल हो चुकी है।
कहानी की शुरुआत हल्दीघाटी के युद्ध से करते हैं। 18 जून 1576। इस दिन मुगल सम्राट अकबर और मेवाड़ के राजा महाराणा प्रताप के बीच खूनी संघर्ष हुआ।
युद्ध से पहले अकबर के जेहन में न सिर्फ मेवाड़ को अधीन करना, बल्कि महाराणा प्रताप को बंदी बनाना भी था। अकबर की यह अभिलाषा इस युद्ध में पूरी नहीं हुई। इसलिए अकबर ने जयपुर के मानसिंह को यह कार्य सौंपा। लेकिन मानसिंह भी अकबर की इस ख्वाहिश को पूरी नहीं कर सके। पांच दिन बाद (23 जून, 1576) अकबर के खास लड़ाके बदायूंनी ने उनके सामने महाराणा प्रताप का हाथी रामप्रसाद और लूट का सामान पेश किया। इससे अकबर को थोड़ी सी भी संतुष्टि नहीं हुई। वे प्रताप को बंदी रूप में देखना चाहते थे। हालांकि इस अभिलाषा को पूरी करने में अकबर के दिग्गजों के छक्के छूट गए थे।इस घाटी में इतना खून बहा था कि हल्दीघाटी, पीली के बजाय लाल हो गई थी। यही वजह है कि हल्दीघाटी (बाहर से) देखने में तो पीली दिखाई पड़ती है लेकिन मिट्टी को थोड़ा सा खुरेचा जाए तो वो लाल दिखाई पड़ती है।
जय जय वीर राजपूताना
Story of Haldighati