Hindi Story of Prithviraj Chauhan
इंदिरावती –
अजमेर के राजकुवर पृथ्वीराज चौहान और चितोड़ के राजकुवर समर सिंह के बीच बहुत ही घनिष्ट मित्रता थी. अपने बढ़ते वैभव के कारण उज्जैन के महाराज ने अपनी पुत्री का विवाह पृथ्वीराज से करवाना चाहा, उन दिनों पृथ्वीराज उज्जैन के पास ही शिकार खेल रहे थे. कुल पुरिहितों ने पृथ्वीराज का टिका चढ़ा कर विवाह का बात को पक्का कर लिया इसी बीच उन्हें ये सूचना मिली की गुजरात के राजा भीमदेव ने चितोड़ पर आक्रमण कर दिया है, इसलिए अपने संबंधो के कारण एवं मित्रता का कर्त्तव्य समझ कर समरसिंह की सहायता के लिए चितोड़ अग्रसर हुए. राह में ही पृथ्वीराज की भेंट समरसिंह के ड्डोत से हो गयी उसने पृथ्वीराज को बताया की दस कोश की दूरी पर ही भीमदेव की सेना पड़ाव डाले हुए है और शीघ्र ही दोनों दलों में मुटभेड हो जाएगी. उसने यह भी कहा की समरसिंह के आज्ञा अनुसार वो आपको ही इसकी समाचार देने के लिए आ रहा था.
अभी भीमदेव ने आक्रमण किया भी न था की पृथ्वीराज चौहान ने अपने सेना लिए समरसिंह के पास जा पहुंचे. उन्होंने एकाएक बिना विश्राम किये गुजरात की सेना में आक्रमण कर दिया, अब लाचार होकर भीमदेव को अपनी सेना का मुह फेरना पड़ा. समरसिंह और पृथ्वीराज की संयुक्त सेना ने भीमदेव पर भीषण आक्रमण कर दिया पर भीमदेव की सेना अपनी स्थान से न हटी. समरसिंह और पृथ्वीराज ने बहुत वीरता दिखाई. युद्ध होते होते शाम हो गयी पर कुछ भी निर्णय न हो पाया.
दुसरे दिन भी युद्ध आरंभ हो गया. आज भीमदेव ने नदी पार कर स्वयं चितोड़ की सेना पर आक्रमण किया, परन्तु वीर समरसिंह ने इस वेग से उसके आक्रमण को रोका की गुजरात की सेना के छक्के छूट गए. पीछे से पृथ्वीराज की सेना ने भी आते हुए गुजरात की सेना में मार काट मचा दी. आज दिन भर के युद्ध में भीमदेव के दस सेनानायक मारे गए. इतने पर भी गुजरात की सेना अपने स्थान में डटी रही पर पृथ्वीराज और समरसिंह एवं उनके वीर सामंतों ने ऐसी वीरता दिखाई की गुजरात की सेना को पीछे हटना पड़ा, गुजरात की सेना पराजित हुई, और भीमदेव वापस गुजरात चली गयी, परन्तु पृथ्वीराज कुछ और दिन चितोड़ में ही रुक गए.
भोलाराय भीमदेव केवल भाग जाने का बहाना ही किया था, वह रणभूमि से हटकर कहीं छिपा रहा और एक दिन जब पृथ्वीराज अपने शिविर में सो रहे थे तब अर्धरात्रि के समय आक्रमण कर दिया. इस आकस्मिक आक्रमण से वे उठ खड़े हुए और जिस अवस्था में थे उसी अवस्था में युद्ध करने लगे. आज रात का युद्ध में जैतसी का छोटा भाई, लखी सिंह, वीर बगरी, रूप धन आदि सरदार मारे गए, परन्तु विजयलक्ष्मी पृथ्वीराज को ही जीत का हार पहना गयी और भीमदेव के तरफ से मेरपहाड़ नामक नामी सरदार समेत पांच हज़ार सैनिक इस युद्ध में मारा गया. अब भीमदेव को वास्तव में हार मानना पड़ा और गुजरात वापस जाना पड़ा. पृथ्वीराज स्वयं समरसिंह की सहायता के लिए चितोड़ में रुके हुए थे और इधर इंदिरावती से विवाह का दिन भी आ गया, पृथ्वीराज ने अपनी तलवार पन्न्जुराय को देकर इंदिरावती से विवाह कर लाने के लिए भेज दिया क्योंकि उस समय यह रिवाज थी की यदि किसी कारणवश वर स्वयं बारात में नहीं आ सकता था तो कोई वर का साथी वर का कटार लेकर विवाह रचाने जा सकता था. जब पंज्जुराय ने पृथ्वीराज के स्थान पर विवाह के लिए गया तो उज्जैन के राजा ने कहा कि मुझे ऐसे मनुष्य से विवाह नहीं करनी है जो स्वयं विवाह में न आ कर युद्ध में चला जाए, चंदरबरदाई ने उन्हें बहुत समझाने की कोशिश की पर उज्जैन के महाराज ने एक न मानी, परन्तु उन दोनों के कुछ झमेला करने पर उज्जैन के महाराज ने उन्हें पांच दिन का समय दिया. इंदिरावती ने भी सारी बातें सुनी उसने ये प्रतिज्ञा कर ली की वो शादी करेगी तो केवल पृथ्वीराज चौहान से ही. परन्तु जब पांच दिन की अवधि जब निकल गयी तब उज्जैन के राजा क्रोधित होकर पृथ्वीराज के सामंतों को निकल जाने का आदेश दे दिया, पृथ्वीराज के सामंत क्रोधित हो उठे और युद्ध की तयारी करने लगे, तुरंत ही युद्ध होने लगा पृथ्वीराज के वीर सामंत ने उज्जैन के राजा को पकड़ कर अपने वश में कर लिया. उज्जैन के राजा की आंखे खुल गयी और उसने बड़ी धूम धाम से अपनी पुत्री का विवाह पृथ्वीराज के भेजे हुए साथी से कर दिया, और इस प्रकार ये झमेला शांत हुआ. वो उसे लेकर अजमेर आ गए. थोड़े ही समय में पृथ्वीराज ने रणथम्भ के राजा की कन्या हंसावती से भी विवाह कर लिया.
Yodha Prithviraj Chauhan