कर्नाटकी
इसी समय उनके बढ़ते प्रताप के कारण कई राजाओं ने उनके समक्ष शरणागत हो रहे थे, इनमे ही दक्षिण प्रान्त के कई नृपतिगण थे, वे उपहार के रूप में पृथ्वीराज को कई चीजे देते रहते थे. उन्होंने मिलकर कर्नाटकी नाम की एक बहुत सुन्दर कन्या पृथ्वीराज को अर्पण की. कर्नाटकी भी पृथ्वीराज के जीवन में एक अनर्थ का जड़ रही थी. इसने भी भारत में विद्वेष फ़ैलाने में कम सहायता नहीं की है इसी के कारण पृथ्वीराज के घर में फूट रूपी बीज बोया जा चूका था. पृथ्वीराज चौहान ने यहाँ पर गलती कर दी थी की इस कर्नाटकी को उन्होंने अपने महल में स्थान दे दी थी. चंदरबरदाई ने कहा है की पृथ्वीराज के बढ़ते वैभव के कारण भारत के दक्षिण प्रान्त के राजा पृथ्वीराज से भय खाने लगे थे इसलिए उन्होंने आपस में सलाह कर विद्वेष फ़ैलाने वाली यह कर्नाटकी नामकी एक बड़ी रूपवती, गान विद्या में निपुण तथा विचक्षण हावभाव संपन्न रमणी पृथ्वीराज को अर्पण की. अभी कर्नाटकी की अवस्था छोटी थी अतः पृथ्वीराज ने कल्हण नाम के नटके को सौंप दिया और कह दिया की इसे गान-नृत्य की शिक्षा में निपूर्ण कर दिया जाए. वैश्या की पुत्री होने के कारण वह इन सब को आसानी से समझती थी, वह शीघ्र ही इन सब में निपुण हो गयी और मौका देखते ही कल्हण ने इसे पृथ्वीराज को सौंप दिया, पृथ्वीराज ने उसकी योवन अवस्था को देखकर महल में डाल लिया
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