Prithviraj Chauhan Biography
अध्य पतन-पृथ्वीराज की भोगविलासिता
जब पृथ्वीराज संयोगिता को भगा कर दिल्ली ले आये तब वे एकदम से संयोगितामय हो गए,वे उनके प्रेम में बिलकुल ही मुग्ध हो गए,उनके सौन्दर्य जाल में फंसकर पृथ्वीराज ने राज्य का निरिक्षण छोड़ दिया, दरबार में आना जाना छोड़ दिया, अपने वीरों के साथ बातचीत बंद कर दी और दिन भर संयोगिता के साथ महल में रहने लगे, प्रजा अपने राजा की दर्शन को न पाकर हाहाकार मचने लगी. राज्य का भर जैतसिंह को मिला था. हालाँकि जैत सिंह एक बहदूर मनुष्य थे पर इससे क्या होता है जब राज्य का राजा को ही अपने राज्य का हाल लेने का फुरसत नहीं है. परन्तु पृथ्वीराज को इन सबसे कोई मतलब न था, कवी चन्द्र कहते है की इस समय पृथ्वीराज बिलकुल ही कर्तव्यहीन हो गए थे.
गौरी तो हमेशा ससे ही अपने अपमान का बदला लेने के लिए तत्पर रहता था, उसके दूत भेष बदल बदल कर दिल्ली नगरी में घूमा करते थे, वे हर समय का खबर अपने सुलतान के पास पहुंचाते थे. गौरी को ये समाचार बार बार मिल रही थी की इस समय पृथ्वीराज अपने राज्य का रक्षा में दंचित नहीं है, उनके राज्य में स्त्रियों की प्रधानता हुई जा रही है, और उनके कई नामी सरदार और सामंत मारे जा चुके है.मुहम्मद गौरी ने तो दरबार में ये भी कह दिया था की जब से मेरी ये हार हुई है तब से मैं ठीक से सोया नहीं हूँ., मैं हमेशा से इसी चिंता में लगा रहता हूँ की पृथ्वीराज से अपनी हार का बदला कैसे लिया जाय.
दिल्ली की खबर को स्सुनकर उसने सैनिको को एकत्र करना शुरू कर दिया, थोड़े ही समय में उसने एक बड़ी सेना जुटा कर दिल्ली की ओर चल दिया.जयचंद भी इस बार मुहम्मद गौरी का साथ दिया, भारत वश का एक मात्र राजा जयचंद ही था जिसने यवनी का साथ दिया था अपने ही देश के राजा के खिलाफ, ये समय भारत वश के लिए बहुत ही दुखित कर देने वाला था, भारत का एक मात्र राजा जो उस यवनी को रोक सकता था संयोगिता की प्रेम जाल में फंसा था, और भारत में काल बनकर गौरी की सेना बरही आ रही थी ऐसे में वहां की प्रजा और सामंत घबराते नहीं तो और क्या करते.बहुत सारे पडोसी राजा ने उन्हें समझाने की बहुत कोशिश की पर उनकी सुनता कौन है. यदि कोई समाचार भेजता तो वो समाचार पृथ्वीराज तक पहुँचने भी न पाता था.ये भारतवश का दुर्भाग्य नहीं तो और क्या था. देश का सौभाग्य के कारण पृथ्वीराज चौहान ने और देश के दुर्भाग्य के कारण संयोगिता ने जन्म लिया था. और भारत वश को इस आध्यापत में डालने का काम पृथ्वीराज के प्रेम प्रसंग ने कर दिया था.
सामंत उन्हें पत्र भेज भेज कर कई तरह से समझाने की कोशिश करते, कई सामंतों ने ये प्रयत्न किया की पत्र उनके पास तक पहुंच जाए, पर रहस्यमयी तरीके से पत्र बीच में ही गायब हो जाते.फिर चंदरबरदाई ने उन्हें एक पुर्जा भेजा जिसमे लिखा था की तुम तो महल में यहाँ आनंद कर रहे हो पर मुहम्मद गौरी तुमपर आक्रमण करने यहाँ आ रहा है, पृथ्वीराज ने वो पुर्जा पढ़ा भी लेकिन झल्ला कर उसे फाड़ कर फेंक दिया और हतास होकर बैठ गए, क्योंकि उन्होंने एक दिन पहले ही भयानक स्वपन्न देखा था जो की उनकी पतन का सूचना दे रहा था. धीरे धीरे पृथ्वीराज की विलासिता का समाचार रावल के समरसिंह तक पहुँच गया. ठीक उसी समय समर सिंह ने भी एक भयानक सपना देखा था जिससे उन्हें यकींन हो गया था की भारत का पतन का समय आ चूका है.इसलिए जैसे ही उन्होंने दिल्ली का समाचार सुना वे स्वयं राज गद्दी अपने पुत्र को सौंप कर दिल्ली की ओर चल दिए.वे अपने साथ एक बहुत ही बड़ी विशाल सेना भी लेकर आये क्योंकि उन्हें पता चल गया था की गौरी भारत पर आक्रमण करने के लिए आ रहा है.
Story of Prithviraj Chauhan
जब समर सिंह दिल्ली आये तब उनकी आगवानी कौन करता पृथ्वीराज तो महल में थे,तब संयोगिता ने आदमी भेज कर उनका आदर सत्कार करवाया था. उनके आने के कई दिन के बाद पृथ्वीराज को समर सिंह के आने की खबर मिली. वे पहले तो उनसे मिलने गए फिर उन्होंने समर सिंह को विदाई देनी चाही.परन्तु समर सिंह हठ कर के रह गए. यदि कोई दूसरा राजा होता तो अपना अपमान समझ कर चला जाता लेकिन समर सिंह दूरदर्शी,बुद्धिमान,और सहनशील थे.उन्होंने अपने अपमान का चिंता छोड़ देश के हित के बारे में सोचा. जब वे पृथ्वीराज से मिलने के लिए गए तब उन्होंने बड़े ही मीठे शब्दों में बहुत कुछ समझाया, आश्वासन दिया. पर पृथ्वीराज इस समय भी हताश से हो रहे थे, चन्द्र का पत्र,स्वप्न, समर सिंह का आगमन,और ठीक उसी समय मुहम्मद गौरी का आक्रमण ये सभी बातें पृथ्वीराज को दहला रही थी. पृथ्वीराज अब अपनी करनी पर पछताने लगे थे, परन्तु अब क्या हो सकता है,कुछ भी हो समर सिंह ने तरह तरह से पृथ्वीराज को लज्जित किया. पृथ्वीराज ने समर सिंह के कहे अनुसार ही कार्य करना सही समझा.