History World: The Himalayan Mountains
दुसरे ही दिन गजनी में युद्ध की तयारियां शुरू होने लगी और मुहम्मद गौरी अपनी सेना को सुस्सज्जित कर के पृथ्वीराज चौहान की ओर युद्ध करने चल दिया. भारत में समय समय पर कई मुसलमान ने आक्रमण कर इसे लूटा है, उन्होंने भारत के कई भू-भाग में कब्ज़ा कर लिया पर वो उनकी रक्षा नहीं कर पाए, और हिन्दुओं ने उनपर फिर से अपना अधिकार कर लिया. मुहम्मद गौरी ने भी भारत के कई उत्तर के भू-भाग में अपना अधिकार जमाया और प्रभुत्व स्थापित किया.
उसने 1174 में मुल्तनानगर,1178 में अनाह्वाडा, और 1182 तक सारे सिन्धु देश (वर्त्तमान में पाकिस्तान) अपना अधिकार जमा लिया था.इसके बाद उसने 1184 में लाहौर और सियाकोट, पर भी अपना अधिकार जमाया था. इसके बाद उसका सामना पृथ्वीराज से हुआ था.
जब पृथ्वीराज को ये मालूम हुआ की मुहम्मद गौरी उनपर आक्रमण करने के लिए प्रस्तुत हो रहे है तो उन्होंने अपने सभी सामंतों, कैमाश,चन्द्र, पुएंदिर, संजम राय, कान्हा को इकठा किया और अपनी सेना के साथ मुहम्मद गौरी को जवाब देने के लिए सारुंड की ओर अग्रसर हुए. मीर हुसैन को जब ये बात मालूम हुई तो उसने भी एक हज़ार सैनिक बल को जमा किया और पृथ्वीराज के सामने प्रस्तुत होकर कहा की महाराज मेरे कारण से ही आपके इस राज्य में ये विपदा आई है मैं कैसे पीछे रह सकता है, आपने मेरी असमय में मदद की थी अब मुझे अपना कर्तव्य पूरा करने दीजिये, पृथ्वीराज उनके बातों को सुनकर बहुत प्रसन्न हुए, और दोनों की सम्मिलित सेना आगे बढ़ने लगी. उन्होंने सारुंड नामक एक जगह में अपना पड़ाव डाल दिया. गौरी के दूतों ने भी ये समाचार उसे सुनाया और तेज़ी से सारुंड की ओर अग्रसर हुई और वहां पहुँच गयी.
पृथ्वीराज चौहान को जैसे ही ये खबर मिली उनकी सेना तैयार हो गयी और “हर हर महादेव” शब्द करती हुई आगे बढ़ी, फौज के आगे बढ़ने का समाचार सुनकर मुहम्मद गौरी ने अपनी सेना को पांच भागो में विभक्त कर पृथ्वीराज की सेना पर आक्रमण कर दिया, पृथ्वीराज चौहान ने यादवराय,महंसी,बड़ाराम गुजर, आदि को मीर हुसैन की मदद करने का आदेश दिया, और सबसे पहले मीर हुसैन का सामना गौरी के सेनापति ततार खां से हो गया, मीर हुसैन के 1500 सैनिक और ततार खां के 7000 सैनिकों ने युद्ध में हिस्सा लिया, बहुत ही घोर युद्ध हुआ, इस युद्ध में ततार खां अपने 5000 सैनिकों के साथ मारा गया और मीर हुसैन भी 300 मुसलमान और 200 हिन्दुओं के साथ मारा गया, ततार खां के मरते ही उसकी सेना भागने लगी. ततार खां को पराजित होते देख खुरासान खां की सेना आगे बढ़ी और उसका सामना पृथ्वीराज के सामंत चामुंडराय से हो गयी, चामुंड राय ने भी खुरासन खां को मार गिराया और उसके मरते ही उसकी सेना बादशाह गौरी की सेना से जा मिली, अब पृथ्वीराज की सेना ने बड़े ही वेग से आगे बढ़ी, पृथ्वीराज चौहान ने वीरता पुर्वक लड़ाई करते हुए उन मुसलमानों की तरफ बढ़ते चले गए, और अपनी तलवार से मुसलमानों को गाजर मुली की तरह काटते गए, हिन्दू सेना की वीरता देखकर उनकी दांत खट्टे होने लगे और वो भागने लगे, पृथ्वीराज चौहान की सेना उनका पीछा करने लगे, जब मुहम्मद गौरी ने अपनी सेना को पीछे भागते देखा तो वो एक जगह खड़ा होकर फिर से लड़ने की इच्छा से सैनिक एकत्र करने लगा, पर पृथ्वीराज के सेना को रोक पाना उसके बस में न थी, जल्द ही पृथ्वीराज की सेना ने उसे चारो तरफ से घेर लिया, मुहम्मद गौरी ने पृथ्वीराज के सामने अपना सर झुकाना ही उचित समझा, और पृथ्वीराज ने “एक झुकी गर्दन पर तलवार चलाने को क्षत्रिये धर्म के विपरीत समझ कर उसे बंदी बना लिया गया. इस युद्ध में मुहम्मद गौरी के बीस हज़ार सैनिक और कितने ही सरदार मारे गए और पृथ्वीराज की तरफ से 1300 सैनिक और 5 सरदार मारे गए. पृथ्वीराज चौहान ने गौरी को पांच दिनों तक दरबार में रखा और मीर हुसैन के पुत्र को उसे सौंप दिया, उन्होंने गौरी को बहुत सा धन, और फिर कभी न आक्रमण करने की प्रतिज्ञा करा कर उसे जाने दिया.
चित्ररेखा मीर हुसैन की मृत्यु का समाचार सुनकर उसके शव के साथ जीवित ही कब्र में गड गयी. और इस तरह से सारुंड का युद्ध समाप्त हुआ.
Prithviraj Chauhan History