क्या शाही दावते खत्म हो गई जो तू मृत्यु भोज खाने चला,
क्या ब्राह्मण व शुद्र कम पङ गये जो यह कृत्य राजपूत करने चला।
क्या आज दान वीर भिखारी बन गया जो दहेज मांगने चला,
क्या आज तेरी क्षत्रियता मर गई जो स्वाभीमान बेचने चला ।।तुझे भी तो भगवान ने देवी समान बहन या भुआदी होगी,
तेरे पिता ने भी तो उसकी शादी कर्ज लेकर ही की होगी ।तो फिर क्यों तू एक और राजपूत परिवार को कर्ज तले दबाने चला ।। धिक्कार है तेरे राजपूत होने पर!
धिक्कार है तेरे क्षत्रिय कहलाने पर !जो तू देवी समान राजपूत कन्या कि बजाय,
उसके पिता से मिलने वाली दहेज की राशि से विवाह करने चला ।।यदि अब भी तूने प्रण ना किया,तो धिक्कार है उस क्षत्राणी को जिसनेतुझे जन्म दिया…
By – Shripal Singh Kabawat Hkm