Battle of Thanesar
थानेश्वर का युद्ध
घर का भेदिया सदा से ही बुरा होता है, धर्मायण के बारे में आप पहले से ही जान चुके है वो हमेशा से पृथ्वीराज की खबरे मुहम्मद गौरी तक पहुंचाता रहता था.
एक बार पृथ्वीराज पानीपत के समीप शिकार खेल रहे थे, उस समय पृथ्वीराज को ये समाचार मिला की शहबुद्द्दीन फिर युद्ध के लिए चला आ रहा है. ये समाचार सुनकर पृथ्वीराज ने तुरंत ही सामंतों की सभा एकत्र की और तुरंत ही चितोड़ समर सिंह के पास ये सूचना दे दी गयी.जब तक शाहबुद्दीन आता तब तक पृथ्वीराज ने भरपूर सेना एकत्र कर ली थी. थानेश्वर का युद्ध को ही तेरायन का युद्ध भी कहते है.इस बार के युद्ध में वीरवर गोयांद्राय भी सम्मिलित थे. कई बार पृथ्वीराज से हारने के बाद गौरी इस बार एक बहुत बड़ी सेना लेकर युद्ध में आया था, वह तेज़ी से बढ़ता हुआ उस स्थान में आ पहुंचा जहाँ पृथ्वीराज शिकार के लिए अपना शिविर डाले थे. गौरी के पहुँचते ही पृथ्वीराज भी युद्ध के लिए तयार हो गए. सेना में जंगी बाजे बजने लगे पृथ्वीराज समेत सभी सामंत और राजपूत सेना युद्ध के लिए सुसज्जित हो उठे, युद्ध का हर हथियार चमकने लगा. इस बार पृथ्वीराज ने बीस हज़ार सेना लेकर मुहम्मद गौरी के एक लाख सेना का सामना किया था. सवेरा होते ही दोनों दलों की सेना युद्ध मैदान में आ पहुंची और थोड़ी ही देर में दोनों दल इस तरह एक दुसरे पर टूट पड़ी की न कोई अपना और न कोई पराया दिखने लगा, सभी एक दुसरे के खून के प्यासे हो गए.
युद्ध करते करते दो यवन सरदार कई राजपूतों को काटते हुए पृथ्वीराज तक आ पहुंचे, परंतू पृथ्वीराज चौहान ने उन दोनों का मुकाबला इतनी ख़ूबसूरती से किया की क्षण भर में ही दोनों मारे गए. इसी तरह मुसलमानों के पैर उखड़ने लगे और वो एक बार फिर पीछे हटने को मजबूर होने लगे. ये देखकर गौरी स्वयं आगे बढ़ा और अपनी सेना को ललकारा, अपने स्वामी को आगे बढ़ता देखकर यवनी सेना में फिर से जोश भर आया और फिर अपने प्राणों की माया छोड़ युद्ध करने लगे. परन्तु बीस हज़ार राजपूत सेना ने इस वेग से आक्रमण किया की यवन सेना तीन तेरह होकर भाग खड़े हुए, गौरी का ललकारना कुछ काम नहीं आया, अपनी सेना को हारते देख गौरी भी वहां से भागना उचित समझा. वह घोड़े से उतर कर हाथी में बैठा ही था की वीर पहाड़राय और लोहाना अजानुबहू आकर गौरी को घेर लिए अपने स्वामी की ये दशा देखकर यवनी गौरी की रक्षा के लिए आगे आये. पृथ्वीराज के भी कई सामंत भी गौरी की तरफ बढ़े, इस जगह में बहुत भीषण युद्ध होने लगा. लोहाना अजानुबाहू ने हाथी पर ऐसा वार किया की हाथी का सर धड से अलग हो गया, गौरी वहीँ जमीन में गिर गया . मुहम्मद गौरी इस बार बहुत बुरी तरह से जख्मी हुआ था, पहाड़राय ने मुहम्मद गौरी को उठा लिया और दिल्ली ले आये पृथ्वीराज उसे दिल्ली ले आये और एक महीने के बाद उसे छोड़ दिया.मुसलमान सेना बहुत बुरी तरह हार ही गयी थी, मुहम्मद गौरी तो इस बार बच गया परन्तु यवनी सेना इस हार को कभी नहीं भूलेगी, मुसलमान सेना बहुत बुरी तरह ससे पराजित हो चुकी थी. तेरायन के युद्ध का ये तो रासो का कथन है परन्तु मुसलमान ईतिहासकार तबकात इ नसीरी का कुछ अलग ही मत है उसका कहना है की जब मुहम्मद गौरी हाथी से गिरने के बाद बुरी तरह से घायल हो गया था तब गौरी को घायल देखकर यवनी सरदार खिलजी ने गौरी को सम्भाला और युद्ध मैदान से भगा कर बाहर ले आया. परन्तु यवनी की इतनी बड़ी हार को देखकर ये बिलकुल भी नहीं लगता है की पृथ्वीराज के अनुमति के बिना मुहम्मद गौरी युद्ध मैदान से बाहर जा सकता था या बच सकता था.
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